homoeopathy

बच्चों में होनेवाले कुछ प्रमुख परेशानियाँ और बीमारियाँ

बच्चों में होनेवाले कुछ प्रमुख परेशानियाँ और बीमारियाँ

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एलर्जी

* एलर्जी की समस्या बच्चों को एक या दो साल की उम्र तक ज्यादा होती हैं. बच्चों को गाय के दूध, घर के धूल धुएं या पाले हुए कुत्ते बिल्ली जैसे जानवरों के बालों से एलर्जी हो जाती है.
एलर्जी में आंखों के नीचे स्याह घेरे सर्दी, आंतों का दर्द, दस्त या त्वचा पर दाने आना आदि एलर्जी के लक्षण हो सकती है. ऐसी एलर्जी का सबसे बेहतर इलाज है कि एलर्जी कारक तत्वों को बच्चे से दूर कर दिया जाए.
* दूसरी ओर होमियोपैथिक दवा से न केवल रोगी के रोग लक्षण दूर होगें, बल्कि एलर्जी दूर होकर समस्त शारीरिकप्रणाली फिर से संतुलित हो जाएगी।
* एलोपैथिक दवाएं एलर्जी जैसी बिमारियों में बहुत कम काम करती है इसलिए अगर बच्चों को एलर्जी की समस्या हो तो होमियोपैथी दवाइयों से उपचार करना बेहतर है. क्योंकि इन दवाइयों में साइड इफैक्ट कम होते है।

जुकाम

* बच्चे को जब जुकाम होता है वह बहुत बेचैन हो जाता है
उसे भूख नहीं लगती और नाक बंद हो जा सकती है जिससे साँस लेने में भी बहुत परेशानी होने लगती है होम्योपैथिक दवा रोगी के रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाती है

एकोनाइट (Aconite): बच्चे को अचानक जुकाम हो जाने पर खास कर ठण्डी हवा में खेलने से होने वाले जुकाम के इलाज में एकोनाइट बेहतरीन दवा है होता यह है कि किसी ठण्डे दिन में आप बच्चे को कपड़ों में अच्छी तरह ढक लपेट कर पालना या चारपाई पर लिटा देते है. ऐसे में बच्चे को ठण्डी हवा लग जाती है.
* सिर पर ठण्डी हवा लग जाने या सिर पर सर्दी लग जाने पर बच्चे का सीना जकड़ जाता है और सांस लेने पर घर-घर करने लगता है. एकोनाइट इसके लिए सबसे उत्तम होमियोपैथी दवा हैं.

बेलाडोना (Belladonna): बच्चे को सर्दी जुकाम और सिर धोने के बाद अचानक होने वाले सर्दी जुकाम में बेलाडोना फायदा करती है. अगर बच्चे को अच्छा खासा बिस्तर पर लिटाया जाता है और रात को वह उठता है तो चेहरा लाल हो जाना, बदन गरम लगना मगर हाथ पांव की हथेलियां और तलुवे ठण्डे लगना तथा रोगी को बेचैनी जैसे प्रमुख लक्षण हो तो बैलाडोना ही सही दवा हैं.

कान में दर्द
* जब बच्चे के कान में दर्द होता है, तो वे बड़ी कर्कश और मर्म भेदी स्वरों में रोते हैं. अगर आप दर्द की जगह को आसानी है से पहचान सकते हैं. जब वह अपना सिर इधर उधर घुमाता है
और कानों को खींचता और उन पर मारता है. उसका चेहरा और तथा कान लाल हो जाता है, अगर दाएं कान में कोई अचानक दर्द शुरू हो तो बेलाडोना ही सही दवा है.
* बेलाडोना अवर्णनीय रूप से दाएं भाग की ही दवा हैं बच्चों को कान दर्द से आराम दिलवाने वाली और भी दूसरी
दवाएं हैं

कैमोमिला (Chamomilla): बच्चा दर्द से बेहाल हो, बच्चा अगर दर्द से बुरी तरह से चिल्ला रहा हो, गर्मी के कारण और हालत बुरी हो जाती है, कभी कभार दर्द से एक गाल भी लाल हो जाता है. गर्म सेंक करने से और भी चिल्लाता है तो कैमोमिला होमियोपैथिक दवा बहुत गुणकारी साबित होती हैं.

डल्कामारा (Dulcamara): जब ठण्डे और सीलन भरे माहौल में आने पर सर्दी जुकाम लग जाए और वह रात को बढ़ जाए तो डल्कामारा बेजोड़ दवा है.

हीपर सल्फ (Hepar Sulph): गले से कानों की तरफ जाता हुआ चुभने वाला दर्द हवा का झोंका लगते ही बढ़ जाए तो हीपर सल्फ देनी चाहिए.

पल्साटिला (Pulsatilla): जब कान का दर्द गर्मी लगने से ज्यादा बढ़ जाए, बच्चे को खुली हवा में लाने पर आराम मिले, उसे प्यास न लगे, धीमे धीमें रोता रहे और माँ बाप का ध्यान बहुत ज्यादा खींचे तो ये पल्साटीला देनी चाहिए.

डायरिया या दस्त

* छोटे बच्चों शिशुओं को दस्त होना, लगना एक गंभीर स्थिति हो सकती है. क्योंकि वयस्कों की अपेक्षा बच्चे का अत्यधिक वजन शरीर में मौजूद पानी की वजह से होता है.
* अगर दस्त लंबे समय तक और बार बार हो रहा हो तो बच्चे के कोशों और खून में पानी की कमी हो सकती है. अगर आपके बच्चे को दो दिन में कई बार पानी जैसे दस्त होते हैं तो
इसका मतलब यह नहीं कि उसे पानी की कमी हो गयी है. परन्तु होने की संभावना जरूर रहती है.
* यहां पर विभिन्न कारणों से हो रहे दस्तों को ठीक करने वाली होमियोपैथिक दवाओं के नाम दिए जा रहे हैं. इनसे विभिन्न प्रकार के दस्तों को पहचानने में मदद मिलेगी.

एकोनाइट (Aconite): अगर ठण्ड लग जाने और सर्दी की वजह से दस्त हो रहे हों तो Aconite दें.
* जब बच्चे के दांत निकलते हैं तो अक्सर पतले और कभी कभी हरे रंग के संडास या मोशन होते है. अगर हरे रंग के
पतले दस्त हो रहे हों तो Chamomilla कैमोमिला नामक दवाई काफी असरदार साबित हुई हैं.

* आर्सेनिकस एल्बम (Arsenicum Album): खराब हो गए भोजन या बहुत ज्यादा फल खा लेने से होने वाले दस्तोंमें बार बार काला, तेज बदबूदार मल आना, बेचैनी बूंट-घूट पानी पीने की प्यास और कमजोरी शेष प्रमुख लक्षण हैं.

नक्स वोमिका (Nux vomica): जरूरत से ज्यादा दूध पी लेने या खाना खा लेने से दस्त लगने पर खासकर तब जब बच्चा शौच के लिए जोर लगाए पर बिल्कुल शौच न हो या थोड़ा सा ही मल निकले, तो नक्स वोमिका देनी चाहिए.

उल्टी आना
* अगर आपका बच्चा हर बार दूध पीने के बाद थोड़ा बहुत दूध उगल देता है तो इसमें डरने या घबराने की कोई बात नहीं हैं, वह जब भी दूध पीता है अपना पेट आसानी से भर लेता है और जो उससे ज्यादा वह पी चुका होता है उसे वह उगल देता है. यही बात पानी जैसी बाकी चीजों के साथ भी हैं.
* जिस तरह कोई टंकी या सिंक भर जाता है. तो पानी ऊपर से बहने लगता है. वैसे ही पेट भर जाने पर बच्चा दूध उगलता है. यह उल्टी करने से अलग हैं उल्टी में पेट में भरी चीजें कुछ
जोर के साथ बाहर आती है.
* अगर उल्टी हो तो पहले उसका कारण तलाशिए शायद उसने कुछ ऐसा भोजन, खासकर मांसाहार खा लिया हो जो उसे माफिक न आता हों. अगर उल्टी से किसी गंभीर बीमारी
का शक होता हो तो ठीक ठीक इलाज से ही बच्चे की परेशानियां दूर होगी और वह जल्दी ठीक होगा.

इपिकैक (Ipecac): उल्टी की यह सबसे अच्छी दवाइयों में से एक है.

आर्सेनिकम (Arsenicum): खराब हो गया भोजन या अधिक फल खाने से उल्टी होने पर आर्सेनिक देनी चाहिए.

ब्रायोनिया (Bryonia): गरिष्ठ (भारी) या तला हुआ भोजन करने से
उल्टी होने पर ब्रायोनिया। इसमें बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है और एकान्त पसंद करता है. खाना खाने के बाद लगातार मितली की शिकायत बनी रहे और जीभ साफ न हो तो इपिकैक देनी चाहिए.

फास्फोरस (Phosphorus): जब ठण्डे पानी की जबरदस्त

प्यास लगी हो और पानी पीने के बाद जैसे ही वह पेट में गर्म हो, उल्टी हो जाती हो तो फास्फोरस देनी चाहिए.

दांत निकलना

* दांत निकलते समय शिशु चिड़चिड़ा हो जाता है वह जिद्दी हो जाता है, हर समय रोता रिरियाता रहता है और ऐसा करता हुआ बहुत बुरा लगता है, उसे जो कुछ चाहिए, उसे वह न मिले तो गुस्से में चीखता चिल्लाता है और मिल जाए तो उसे गुस्से में फर्श पर पटक देता है.
* बच्चे को अगर छुआ जाए या उसे गौर से देखा जाए तो बच्चा चीख चिल्लाकर अपना विरोध प्रकट करता है. जब बच्चे को गोद में लेकर घुमाया फिराया जाता है तब ही वह चुप होता है. जो बच्चा आराम से दांत न निकाल पाता हो और उसमें ऊपर बताए गए लक्षण भी मिलें तो – कैमोमिला (Chamomilla) 30 दिन में 3 बार दें.

* बच्चो का दांत निकलते समय होने वाली कठिनाइयों की एक और मशहूर दवा हैं. कैल्केरिया कार्बोनिका (Calcarea Carbonica). यह सीपी (मोती के खोल) से बनाई जाती है. मोटे थुलथुले बच्चों के लिए खास फायदेमंद, हड्डियाँ कमजोर हों , सिर पर पसीना आये .

जिस बच्चे को कैल्केरिया कार्बोनिका (कैल्केरिया कार्ब) की जरूरत होती हैं. उसमें कैल्शियम को न पचा पाने के कारण कैल्शियम की कमी हो जाती है. इसलिए यदि उसे कुछ ज्यादा कैल्शियम देने का भी कोई फायदा नहीं होता, कैल्केरिया कार्ब कैल्शियम को पचा कर उसकी कमी पूरी करता है.

  • दन्त निकलते समय पतले दस्त, जो मात्रा में बहुत अधिक हों, बच्चा मसुढ़ों को दबाता रहे – पोडोफाईलम 30 दिन में 3 बार
  • दांत निकलने के दिनों में बच्चे के शरीर का ऐंठना – बेलाडोना 30  दिन में 3 बार

बुखार
* बुखार कोई रोग नहीं रोग का एक लक्षण भर है, इससे पता चलता है कि रोगी का शरीर किसी रोग या इन्फैक्शन का मुकाबला कर रहा है.
* जब कुदरत सभी तरह के रोगाणुओं से लड़ती है तो बुखार उसका सबसे ताकतवर हथियार होता है. उसके असर या प्रभाव से रोगी से लड़ने वाली सभी क्रियाएं तेज हो जाती है.

  • जब सुखी ठण्ड लगने के कारण बुखार लग जाये और बहुत बेचैनी हो – एकोनाइट 30- हर 1 घंटे पर 
  • आँख और चेरा लाल , हाथ पैर ठंडे ,तेज बुखार, बच्चा अचानक चौंक जाए- बेलाडोना 30 – हर 1 घंटे पर 
  • बासी या खराब खाने पिने के बाद बुखार , बेचैनी और थोडा-थोडा लेकिन जल्दी जल्दी पानी पिने की इच्छा, भय- आर्सेनिक 30 हर 2 घंटे पर 
  • चुपचाप लेते रहने की इच्छा, देर से मगर काफी मात्रा में पानी पी जाए – ब्रायोनिया 30 हर 1 घंटे पर
  • भीग जाने के कारण बुखार , शारीर में दर्द , बेचैनी- रस टॉक्स 30 हर 1 घंटे पर
  • जब पसीना और प्यास बिलकूl न हो , निंस सी आई रहे, पेशाब करने के बाद रोग घटे , चुपचाप लेटने की इच्छा हो – जेल्सेमियम 30 हर 1 घंटे पर 
  • चोट लगने , गिरने के कारण बुखार हो – आर्निका 30 दिन में 3- 4 बार 
  • बुखार के हर लक्षण में उपयोगी – फेरम फ़ॉस 6X हर 2 घंटे पर 

 

बच्चों के लिए कुछ खास दवाएं

  • जब बच्चे का विकास बहुत धीमा हो ,जैसे चलना, बोलना, दन्त निकलना ,वजन बढ़ना आदि – बैराइटा कार्ब 200 या 1M
  • दूध से एलर्जी – ट्यूबरकुलाईनम 200, या 1M
  • डर या सजा का के गुमसुम होना – इग्नेशिया 200 या 1M
  • शारीरिक और मानसिक कमजोरी – जिन्कम मेट 30 
  • बच्चा चलना देर से सीखे बच्चे को ठण्ड ज्यादा महसूस हो – साईलिशिया 200, 1M
  • मंद बुद्धि के बच्चों के लिए – बैराइटा कार्ब 200 या 1M
  • हीन भावना, आत्मविश्वासकी कमी , बच्चा कुछ भी याद न रख सके, दूसरों को चिढाये और लडे- झगड़े- लाईकोपोडियम 200 या 1M
  • जब बच्चा जिद्दी हो , तोड़-फोड़ और मार धाड़ पर आमदा हो , धमकी देने वाला , झगड़ालू – टैरेन्टुला 200 दिन में 
  • बच्चा दिन रात रोता रहे या दिन के वक्त अच्छी तरह चुप रहना लेकिन रात होते ही चिल्ला चिल्ला कर रोना, दस्त में खट्टी गंध और पेट में दर्द और ऐंठन- जलापा 30 दिन में 3 बार
  • दूध या दूध से बनी कोई चीज सहन न होना, कुछ भी खाने या पिने के बाद उलटी होना और उसके बाद मुर्दे के जैसा सुस्त पड़ जाना, अकड़न, दंती लगना, मृगी के लक्षण, मुह में फेन, खट्टा कै और दस्त उसके बाद बिलकुल निश्तेज हो जाना , पेट में दर्द और मरोड़, ऐंठन – एथुजा 30 या 200 दिन में 3 बार (बच्चों की महौषधी)

 

बच्चों में कुपोषण से होने वाले रोग

अन्धता
यह एक दुःखद सत्य है कि कुपोषण से हमारे देश में प्रत्येक वर्ष लगभग हजारों बच्चे अन्धे हो जाते है। इससे भी अधिक संख्या उन बच्चों की है जो आंशिक रूप से अन्धे होते है। यह दुष्परिणाम भोजन में विटामिन ए की कमी की वजह से होता है। इस अन्धेपन को रोका जा सकता है यदि हम अपने बच्चे के नित्य भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए युक्त पदार्थों का सेवन कराएं। भोजन में दूध, दही, हरी और पीली सब्जियां और फलों के न होने से विटामिन ए की कमी हो जाती है। जिन बच्चों में इस विटामिन की कमी होती है उनके आँखों की रौशनी कमजोर हो जाती है ज्यादा बढ़ जाने पर अन्धेरे में बिलकुल नही देख सकते। आँख का सफेद हिस्सा सूख सा जाता है, सिकुड़ जाता है और उसमें कीचड़ सा दिखाई देने लगता है। आँख के काले गोल हिस्से के दोनों तरफ धब्बे पड़ जाते है। ये सूखे और सफेद रंग के होते है। बच्चा रोशनी की तरफ देखना नही चाहता और अपनी आँखें बन्द रखता है।
बाद में काले हिस्से का ऊपर का आवरण (कोर्निया) नर्म और घाववाला हो जाता है। जिससे किरटोमलेशिया नाम की बीमारी हो जाती है और बच्चा अन्धा हो सकता है। यह परिवर्तन बहुत तेजी से हो सकता है। कॉर्निया पर घाव हो जाने पर इसकी चिकित्सा तुरन्त करवानी चाहिए अन्यथा बच्चा अन्धा हो सकता है। इसके लिए लगभग एक सप्ताह तक विटामिन ए की 1 लाख से 2 लाख यूनिट सुई या मुँह के जरिए दी जा सकती है। सुई के जरिए तभी देना चाहिए जबकि बच्चे को दस्त लगे हों। इसके उपरान्त विटामिन ए की 5 से 6 हजार इकाईयाँ प्रतिदिन कुछ समय तक देते रहना चाहिए। आँखों को साफ रखने के लिए उन्हें दिन में कम से कम
तीन बार (यूफ्रेशिया Q 1 भाग और स्वच्छ जल 5 भाग) धोना चाहिए। विटामिन ए की कमी को रोकने के लिए 6 वर्ष की उम्र तक बच्चों को प्रत्येक 6 महीने में 1 बार विटामिन ए की 2 लाख यूनिट देते रहना चाहिए।

विटामिन ए युक्त खाद्य पदार्थ

दूध,दही,अंडे, गहरे हरे पीले पत्तेदार साग-सब्जियां-पालक,बथुआ,मेथी, चौलाई, धनिया, मुली का पत्ता आदि तथा पका आम पपीता आदि तथा लाल गाजर का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

विटामिन ए लेने से अन्य फायदें –

आँखों की रौशनी बढती है।

सांस सम्बन्धित रोगों जैसे जुकाम के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है।

मुहांसे और अन्य त्वचा रोगों में फायदेमंद है।

बालों, त्वचा ,हड्डियों और दाँतों को सवस्थ बनता है।

गुर्दे में पथरी बनने से रोकता है।बच्चों की वृद्धि में सहायक है।

ये सभी लाभ हर बच्चे को मिल सकते हैं अगर हम उसे होमेयोपैथिक दवाओं के अलावा विटामिन ए की एक खुराक प्रत्येक 6 माह पर 6 वर्ष की उम्र तक दें।

स्कर्बी

यह रोग विटामिन सी की कमी के कमी से होता है, यह बीमारी स्तनपान करनेवालों बच्चों को नहीं होता है। स्क्रबी होनेपर बछा चिडचिडा हो जाता है उसकी हड्डियों में दर्द होता है , मसुढे नर्म हो जाते हैं और उस से खून भी बहने लगता है।

विटामिन सी की कमी को पूर्ति करने के लिए भरपूर मात्रा में संतरा, निम्बु, सब्जियां, टमाटर, आंवला , अमरुद आदि खाने चाहिए।

रिकेट्स

यह बीमारी विटामिन डी की कमी के कारण होती है। इसमें कलाई और टखने चौड़े हो जाते है। सीने की दोनों तरफ की पसलियों पर गोल उभार हो जाते है। हड्डियाँ नर्म पड़जाती है और चलने तथा खड़े होने पर वजन पड़ने से टेढी हो जाती है। घुटने आपस में छुने लगते है अथवा दोनों जाँघों की हड्डियाँ और टांगों की हड्डियां कमान की तरह टेढ़ी हो सकती है। इस रोग के कारण लड़कियों की कूल्हे की हड्डी का आकार बिगड़ सकता है जिससे आगे चलकर बच्चा जनने में परेशानी हो सकती है। अधिकतर खाद्य पदार्थों में विटामिन ‘ डी ‘ बहुत कम होती है। इसका मुख्य स्त्रोत सूर्य की किरणें है जो शरीर में इस विटामिन के पूर्व पूर्ण को विटामिन ‘ डी ‘ में परिवर्तित कर देती है।
चिकित्सा के लिए विटामिन ‘ डी ‘ की 6 लाख यूनिट खुराक मुँह या सुई से दी जा सकती है। इसके बाद 3-4 माह जब तक रोग ठीक न हो जाय प्रतिदिन 1 हजार यूनिट की खुराक मुँह से देनी चाहिए।

विटामिन बी की कमी
विटामिन ‘ बी ‘ की कमी के कारण मुँह के किनारे फट जाते है और वहाँ घाव हो जाते है। होंठ भी फट जाते है और सूज जाते है। हो सकता है कि जीभ भी गहरे लाल रंग की हो जाय और उसमें बहुत दर्द हो। विटामिन ‘ बी ‘ का एक तत्व जिसे निकोटीनिक एसिड कहते है, की कमी से पेलाग्रा नामक बीमारी हो जाती है। इससे शरीर के खुले हिस्सों की अर्थात गर्दन, हाथ और पैर की त्वचा लाल हो जाती है साथ ही सूज जाती है और फट जाती है। इसमें खुजली और जलन होने लगती है।।
इस रोग के लक्षण देखते ही बच्चे को विटामिन ‘ बी ‘देना चाहिए। बच्चों को खाने में सब्जीयाँ, दूध आदि प्रचुर मात्रा में देनी चाहिए क्योंकि इन सभी में विटामिन ‘ बी ‘ काफी मात्रा में पाया जाता है।

बच्चे को जहां तक हो सके उन्हें कम से कम दवाइयां देनी चाहिए. मगर कभी-कभी दवाइयों की आवश्यकता पड़ती है.ऐसा समय भी आ जाता है जब बच्चा बहुत ज्यादा बीमार होजाता है और पूरा घर परिवार परेशान हो उठता है. बच्चे की लगातार देखभाल करके थके हुए रात भर जागे हुए मां बाप सोचते है कि कहीं वे भी न बीमार पड़ जाए. मगर जब आपको पता चलता है कि आप एक सुरक्षित और असरदार चिकित्सा-प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं तो आप को बहुत
राहत मिलती है. इस चिकित्सा प्रणाली से न सिर्फ आपके बच्चे की परेशानियां दूर होंगी बल्कि उसका संक्रमण या रोगभी दूर हो जाएगा.

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