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पेट में पानी- जलोदर Ascites

पेट में पानी- जलोदर

Ascites – कारण, लक्षण और ईलाज

Ascites ka ilaaj

पेट में पानी इकट्ठा होने को जलोदर, जलोदरी, उदरी तथा अंग्रेजी या Ascites या Dropsy of the abdomen कहते है। इसकी भी एक कहानी है। इस अवस्था में रोग और चिकित्सक दोनों को ही भ्रम होने की सम्भावना है। ऐसी महिलायें भी देखी गयी है जो जलोदर को गर्भ समझकर आश लगाये बैठी रहीं है और जब नौ या दस माह बीतने पर भी प्रसव पीड़ा न हुई तो डाक्टर से सलाह लेने जाते हैं लेकिन जब तक रोग और गम्भीर हो चूका होता है। इसी प्रकार जलोदरी में पेट में वायु, पेट फुलना, पेट में अर्बुद, तोंद निकलना आदि का भी भ्रम हो जाता है। अत: इस अवस्था की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर बिना देर किये सफल चिकित्सा हेतु गहन जाँच की आवश्यकता है। वास्तव में पेट में पानी इकट्ठा होना कोई अलग बीमारी नहीं है बल्कि दूसरी बीमारियों का विकृत क्रिया-फल मात्र है।

परिभाषा(Definition)-अन्त्रावारक गुहिका (Peritoneal cavity) में जलीय निःसरण

 

कारण (Ascites causes)

जलोदर साधारणत: अन्य रोगों के बिकार के रूप में उपस्थित होता है। जैसे :

  •  वात रोग

  •  सर्वांग शोफ

  •  यकृत रोग

  •  हृदय रोग

  •  गुर्दे की बीमारी में अण्डलाल मिला पेशाब

  •  ऋतु स्राव सम्वन्धी गड़वड़ी

  •  अन्त्रावरक-झिल्ली की बीमारी जैसे टी० वी०

  •  प्लीहा रोग

  •  फुसफुस रोग

  •  रक्त वाहिनीयो की बीमारियाँ

  •  कैन्सर

  •  कुपोषण इत्यादि 

 

लक्षण (Ascites Symptoms)

पेट में बहुत ही अल्प मात्रा में पानी इकट्ठा होने पर प्रारंभिक अवस्था में कोई भी लक्षण नहीं भी मिल सकता है।

∎ पेट के सामने वाला भाग ऊँचा और बड़ा दिखाई देता है । पानी की मात्रा और भी बढ़ जाने पर दोनों पीछे का भाग भी ऊँचे दिखाई देने लगते हैं।

∎ अपच।

∎ मुह से दुर्गन्ध।

∎ मिचली और उलटी।

∎ प्रायः कब्ज रहती है।

∎ बुखार ।

∎ पुरानी अवस्था में अधिक पानी जमा होने पर सांस लेने में कष्ट, खासकर लेटने पर।

∎ पेशाब गाढ़े रंग का । पेशाब की मात्रा घट जाती है।

∎ कमर के निचले हिस्से में दर्द ।

∎ liver के आसपास दर्द ।

∎ कभी-कभी प्यास नही लगना ।

∎ धडकन बढ़ जाना इत्यादि ।

 

1.निरीक्षण (INSPECTION)

पेट के सामने वाला भाग ऊँचा और बड़ा दिखाई पड़ता है। त्यधिक पानी जमा होने पर पेट के दोनों पाश्र्व भी ऊँचा दीख दृते है। पेट के आगे का दीवार पर शिरीय प्रक्षेप देखा जा सकता है।

2.स्पर्श परिक्षण (PALPITATION)

∎ पेट मुलायम रहता है, किन्तु अर्बुद रहने पर कड़ा प्रतीत होता है।

∎ प्लीहा बढ़ा हुआ मिल सकता है।

∎ यकृत के सूत्रण रोग रहने पर यकृत स्पर्श नही होगा। यकृत रोग के कारण जलोदर होने पर यकृत खूब बड़ा हो जाता है। पेट में अधिक पानी जमा होने पर बढ़ा हुआ यकृत भी उसमें डूब जाता है और यकृत हाथ में नहीं पाया जाता। यकृत के ऊपर भी थोड़ा-सा पानी रहता है। इस अवस्था में अंगुली से यकृत स्थान को दबाकर वह पानी अगर नहीं हटा लिया जाय तो यकृत हाथ में नहीं लगता। इससे भी प्रमाणित होता है कि पेट में पानी इकट्ठा हुआ है।

 

आघातन (PERCUSSION):

∎ पेट के ऊपरी भाग में जहाँ ऑते और पाकस्थली पानी के ऊपर तैरते रहते है वहाँ प्रति ध्वनि पाया जाता है, किन्तु पेट के नीचे और दोनों पाश्र्व में ठोस आवाज मिलते है। रोगी को लिटाकर और फिर करवट बदलवा कर पेट पर आघातन परीक्षा करने से आँत हमेशा पानी के ऊपर तैरते रहने के कारण ऊपर की ओर प्रति ध्वनि मिलेगा और उसके विपरीत ओर ठोस आवाज मिलेगा। इसे स्थान बदलने वाला ठोस आवाज (Shifting dullness) कहते है। 

∎ रोगी को चित्त लिटाकर पेट के ठीक बीचो बीच ऊपर से नीचे की ओर रोगी को अपने एक हाथ का किनारा रखने को कहे। तत्पश्चात रोगी के पेट के एक तरफ बायें हाथ की तलहत्थी रखकर दूसरे पाश्र्व में दाहिने हाथ की अंगुली से ठोकने पर बायें हाथ की तलहत्थी में पानी के तरंगों की तरह एक आघात अनुभव में आता है। इसे विलोड़न कहते है।

3. अल्ट्रा सोनोग्राफी (ULTRA SONOGRAPHY) :

अल्ट्रा सोनोग्राफी द्वारा जलोदर का निदान आसान हो गया है। पेट में थोड़ा सा भी पानी रहने से अल्ट्रा सोनोग्राफी द्वारा पता चल जाता है।

 

विभेदक निदान (Differential diagnosis)

इस परीक्षा में जलोदर को कुछ अन्य रोगों से भ्रम होने की सम्भावना है, जिसमे 2 मुख्य हैं:-

1.अंडाशय में अर्बुद (Overian tumour)

∎ यह रोग प्रायः एक साइड में ही आक्रमण करता है और धीरे-धीरे बढ़ता है

∎ रोग वाली साइड की तरफ आघात करने पर उस स्थान पर ठोस आवाज पायी जाती है इसमें तरल पदार्थ का हिलना और विलोड़न नही पाया जाता है ।

 

2.गर्भ (Pregnancy)

∎ गर्भ के लक्षण पाए जाते हैं ।

∎ राजोबन्द और गर्भावस्था अवधि के अनुसार ही गर्भाशय के आकार बढ़ता है ।

∎ तरल पदार्थों का संचालन और विलोड़न नही पाया जाता है ।

∎ अल्ट्रा सोनोग्राफी या x-ray से निदान सम्भव और निश्चित ।

 

दवाएं (Homoeopathic Mecicines)

यकृत रोग के कारण

एसिड एसिटिक 30 -ज्यादा पेशाब के साथ ज्यादा प्यास

एपिस मेल  30 – प्यास नहीं रहती, पेशाब थोड़ा, रोगी बिल्कुल सो नहीं सकता, सांस में कष्ट।

एपोसाइनम Q – जबर्दस्त प्यास

एसिड फ्लोर 30 – यकृत बड़ा और कड़ा, जो whisky पीते हैं

आर्सेनिक एल्ब 30– ऐसा तेज और अमिट प्यास जिसमें थोड़ा थोड़ा और बार बार पानी पीता है, यकृत और प्लीहा (spleen) बढ़ जाना।

चाइना 6, 30– यकृत और प्लीहा बढ़ जाने के कारण जलोदर।

 

गुर्दे के रोगों के कारण

आर्सेनिक एल्ब 30, 200 – अत्यधिक प्यास लेकिन हर बार थोड़ा थोड़ा पानी पीता है, चेहरे का सूजन, उल्टी होना।

आर्सेनिक आयोड 30 – ब्राइट्स रोग के साथ जलोदर।

कॉल्चिकम Q, 30, 200– पेशाब थोड़ा गंदला, उसमे सड़े खून की तरह बदबू।

हेलिबोरस नाइगर 30, 200 – पेशाब गंदला और बहुत कम मात्रा में होना। पेशाब में धुएँ जैसा एक तरह का पदार्थ तैरना और कॉफी के चूरे की तरह तली जमना।

लियाट्रिस स्पाइकेटा Q -पेशाब की मात्रा बहुत कम।

लैक डिफ्लोरेटम – बहुत दिनों से पेशाब में अण्डनाल आने के कारण।

टेरिबिन्थ 30, 200 – गुर्दे में रक्त अधिक हो जाने के कारण जलोदर, पेशाब बहुत कम खून मिला हुआ।

थ्लैस्पि बर्सा – पेशाब के तकलीफ के साथ पेशाब में ईंटे की चूर्ण की तरह तली।

जिंकम मेट 30  – गुर्दे के स्थान में दर्द और अप्रिय अनुभव।

 

ह्रदय रोग के कारण

एसिटिक एसिड 6, 30 – तेज प्यास, शरीर का चमड़ा फीका और सूखा, उल्टी, शरीर में जलन, रह रह कर पसीना आना।

एपोसाइनम Q, 30 – नाड़ी की गति धीमी, लेकिन बीच बीच में तेज हो जाना, सांस में कष्ट, तेज प्यास।

एपिस मेल 30, 200 – बिना प्यास का जलोदर, पेशाब थोड़ा, शरीर में दाह,  बहुत अधिक श्वास कष्ट, नाड़ी की गति धीमा।

आर्सेनिक एल्ब 30, 200 – मानसिक बेचैनी, मृत्यु भय, साथ ही सारे शरीर में जलन, प्यास अधिक मगर थोड़ा थोड़ा पानी पीता है।

आर्सेनिक आयोड 30 – अत्यधिक कमजोरी, रात में पसीना, धड़कन तेज और सांस में तकलीफ।

कॉनवैलेरिया मैजेलिस -जलोदर के साथ श्वास में परेशानी, सो न सकना। जरा सा हिलने डुलने से कलेजा धड़कना। नाड़ी की गति तेज और अनियमित।

डिजिटेलिस 30, 200 – रोगी दुःखित और निराश, हमेशा डरता है। नाड़ी की गति बहुत धीमा, धड़कन अचानक कभी कभी अचानक तेज हो जाना। कलेजे में डंक मारने जैसा दर्द। सांस की तकलीफ और इसके कारण सो नहीं पाना।

लैकेसिस 200– यकृत, हृत्पिंड, और प्लीहा के रोग के कारण जलोदर। पेशाब काले रंग का और थोड़ा होता है।

 

फेफड़े के रोग के कारण

आर्सेनिक एल्ब 30, 200 – प्यास अधिक लेकिन हर बार थोड़ा थोड़ा पानी पीता है। कमजोरी, बेचैनी, सांस में तकलीफ, दाह।
अन्य कारण से

लड़कियों या महिलाओं में ऋतू स्राव बंद होकर जलोदर होना – एपोसाइनम Q, 30

उद्भेदज ज्वर (Eruptive fevers) के बाद – एपिस मेल 30, 200

खानपान

∎ हल्के सुपाच्य और पौष्टिक भोजन दें ।

∎ नया चावल, खिचड़ी, दही, खट्टी चीजें, रसीले पदार्थ, अधिक पानी, सुखी साग, मांसाहार मना है ।

∎ नमक का प्रयोग विशेष रूप से वर्जित है ।

∎ खूब पुराने और महीन चावल का भात, सफेद पुनर्नवा, जौ का माड़, मुंग और कुलबी का दाल, सेम करेला, खेकसा, कच्चू, शलगम, परवल, मूली नीम, ब्राह्मी, बैगन, बिना मख्खन वाला छाछ इत्यादि फायदेमंद हैं ।

 

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Depression, Anxiety मानसिक अवसाद Sadness

Source–Homeo gagan (Dr. shila kumari MD)

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2 thoughts on “पेट में पानी- जलोदर Ascites”

  1. Sir, mere bhai ko gross ascites bataya gya hai,uske stomach me swelling ho chuki hai. Iska kya treatment hai.Plz bataye

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