पथरी का इलाज

Kidney Stones | गुर्दे की पथरी / मूत्र पथरी

गुर्दे की पथरी या मूत्र पथरी

Kedney stone/Renal Calculus

गुर्दे (Kidney) तथा मूत्र की पथरी का रोग एक आम समस्या है | उत्तर भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में यह रोग बहुतायत से पाया जाता है | एक अनुमान से पता चलता है की लगभग 5 प्रतिशत व्यक्तियों में किसी न किसी आयु में यह रोग किसी न किसी रूप में अवश्य प्रकट होता है | कुल पथरी  रोगियों के 10 से 15 % रोगियों में यह रोग कोई लक्षण दिखाई नहीं देता और अगर पथरी का प्रभाव दोनों गुर्दों को धीरे-धीरे नष्ट करता जाता है |

    यह रोगी बाद में गुर्दा फेल्योर की अत्यंत जटिल और कष्टप्रद बीमारी का शिकार हो जाते हैं | दूसरी ओर इस रोग का सही समय पर इलाज हो जाने से न केवल गुर्दों के नष्ट होने से बचाया जा सकता है, बल्कि अन्य परेशानियों जैसे उच्चरक्तचाप और मूत्र तंत्र के बार-बार होने वाले संक्रमण से भी बचा जा सकता है |

गुर्दे की पथरी का रोग (Kidney Stone)

गुर्दे की पथरी का रोग सामान्यतः 20 से 40 वर्ष के आयु वर्ग में अधिक देखने को मिलता है | हमारे देश में लगभग 90 प्रतिशत रोगी पुरुष होते हैं जबकि पश्चिमी देशों में इसका ठीक उल्टा देखा जाता है | आनुवंशिक कारकों का इस रोग में खास महत्व है और लगभग 15 प्रतिशत रोगियों में परिवार के किसी अन्य सदस्य में भी इस रोग के लक्षण मिलते हैं | यह रोग कम शारीरिक श्रम करने वाले वर्ग में अधिक देखने को मिलता है | इस रोग के लक्षण प्रायः गर्मियों में अधिक प्रकट होते हैं |

पथरी बनने का कारण (Kidney Stones Causes)

गुर्दे में पथरी बनने के कारण जटिल है | इनको मुख्य रूप से निम्नांकित कारणों से जाना जा सकता है |

  1. मूत्र में कैल्शियम, ऑक्सलेट और यूरिक एसिड का मेटाबोलिक या किसी अज्ञात कारण से अधिक मात्रा में निष्कासन |
  2. मूत्र में साइट्रेट, जिंक, मैग्नीशियम, पाइरोफॉस्फेट और नेफ्रोकैल्शिन का कम मात्रा में पाया जाना |
  3. मूत्र तंत्र में रहने वाला लगातार संक्रमण |
  4. मूत्र तंत्र में होने वाली कुछ जन्मजात व्याधियाँ जैसे रीनल ट्युबलर ऐसिडोसिस आदि |
  5. मूत्र मार्ग में होने वाली बाधाएँ |
  6. पेय पदार्थ का अति कम मात्रा में ग्रहण करना |
  7. पैराथायराइड नामक ग्रंथियों में होने वाला रोग 

                                    इन सभी कारणों से अंततः गुर्दे   में  प्रारंभ में क्रिस्टल बनते हैं , जो धीरे-धीरे बड़े होकर पथरी का रूप ले लते हैं | यही पथरी मूत्र के साथ गुर्दे (Kidney)  से नीचे उतरकर मुत्रवाहिनी (युरेटर ) और ब्लैडर में आ जाती है |

क्या है गुर्दे की पथरी  (What is kidney stone)

   गुर्दों और मूत्र मार्ग में बनने वाली पथरियाँ रासायनिक रूप से 3 तरह होती है | इनमे से सबसे प्रमुख और बहुतायत में पाई जानेवाली पथरी अधिकतर  कैल्शियम ऑक्सलेट नामक पदार्थ की होती है | इसके बाद कैल्शियम फॉस्फेट और यूरिक एसिड की पथरियों का नंबर आता है | विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि लगभग 50 से 60 प्रतिशत पथरी रोगियों में पथरी मुख्यतः पहले दो प्रकार के रसायनों का मिश्रण होती है | 

लक्षण (symptoms of kidney stones)

जिन लोगों को पथरी की समस्या होती है, उन्हें  शुरू में इसका पता नही चल पाता । इसके लक्षण तभी दिखाए देते हैं जब किडनी की पथरी का आकार बढ़ने लगता है और यूरीन पास करने में दिक्कत होती है।

गुदों और मूत्र मार्ग में होने वाली पथरी का रोग, रोगी को निम्न लक्षण समूह में से कोई एक हो सकता है।

  1. पीठ के नीचे की ओर दायें या बायें ओर हल्का दर्द या दबाव सा बना रहना।  
  2. पेशाब में रुकावट  या बार बार पेशाब होना , जलन 
  3.  पेशाब में खून आना । यह लक्षण बिना किसी प्रकार के दर्द के भी हो सकता है। कभी-कभी पेशाब में जलन और पेशाब का रंग सफेद हो सकता है।
  4. अचानक पीठ में नीचे की तरफ तेज दर्द का उठना, जो आगे की ओर अग्रसर होता हैं, यह दर्द अत्यधिक तीव हो सकता है रोगी दर्द के दौरान अत्यधिक बेचैन हो जाता है। उसे उल्टियाँ भी हो सकती है। इस तरह का दर्द पथरी के मूत्रवाहिनी (यूरेटर) में होने की ओर इशारा करता है।
  5. लगभग 10 से 15 प्रतिशत रोगियों में पथरी का रोग कोई लक्षण पैदा नहीं करता और एक या दोनों गुदों को धीरे-धीरे नष्ट करता जाता है। गुर्दे में पथरी किसी अन्य रोग के लिए हुई जाँच में पता चलती है।

गुर्दे की पथरी के रोग का निदान आसान है। यदि किसी को भी ऊपर लिखे लक्षणों में से कोई है या उसमें पथरी की बीमारी का पारिवारिक इतिहास है तो उसे चिकित्सक से परामर्श कर निम्न जाँचे करा लेनी चाहिए

 मूत्र की जाँच

        मूत्र में कैल्शियम ऑक्सलेट, फास्फेट या यूरिक एसिड के क्रिसटल मिल सकते हैं। सूक्ष्म स्तर पर खून को रिसाव और मवाद के आने का भी पता चल सकता है।

पेट का एक्स-रे

       सावधानीपूर्वक और तैयारी के साथ करने पर यह एक कम खर्चीली और संवेदी जाँच है। लगभग 70 से 80 प्रतिशत रोगियों में यह रोग का निदान कर सकता है।

अल्ट्रासाउन्ड

       अल्ट्रासाउण्ड विधि से गुर्दे और ऊपरी मूत्रवाहिनी के स्टोन तो पता चल जाते है, लेकिन निचली मूत्रवाहिनी और मसाने की पथरी के लिए यह जाँच उपयुक्त नहीं है। गुर्दे की स्थिति (पथरी की वजह से सूजन या गुर्दे की सिकुड़ जाने की दशा) इस जाँच से पता चल जाती है।

आई.वी.पी

 यह एक प्रकार की एक्स-रे जाँच है जो गुदों और मूत्रतंत्र को पूरी तरह से दर्शाती है। इसे गुर्दे पथरी के रोग में सर्वोत्तम मानक माना जा सकता है।

पथरी रोग का उपचार क्यों?

प्राय: रोगी यह प्रश्न करते हैं कि यदि उनके गुर्दे में कोई पथरी है भी तो उनको उससे कोई कष्ट नहीं है। ऐसे में उन्हें उपचार की क्या आवश्यकता है। कभी-कभी रोगी को मालूम भी होता है कि उसे दायें या बायें गुर्दे में पथरी है, लेकिन कोई भी लक्षण न होने से वह उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता।

      गुर्दों और मूत्र मार्ग में पाये जाने वाली हर वह पथरी जो बड़े आकार की है (लगभग 1 सेमी.) से अधिक उपचारित होनी चाहिए। उपचार न होने की दशा में वह गुर्दे को धीरे-धीरे नष्ट करती जाती है। गुर्दे धीरे-धीरे नष्ट होते जाते हैं और मरीज को इसका पता भी नहीं चलता। एक या दोनों गुर्दे नष्ट हो सकते है। इसके अतिरिक्त गुर्दे की पथरी का उपचार न होने की दशा में उच्च रक्तचाप और मूत्र मार्ग का संक्रमण होने का अंदेशा भी रहता है।

रोग का उपचार

जैसा कि पहले बताया गया कि यदि पथरी का आकार एक सेमी. से कम है और जाँच से उसकी वजह से गुदों पर कोई बाधा पता नहीं चलती तो ऐसे रोगी को चाहिए कि वह अत्यधिक मात्रा में पानी पियें और समय-समय पर जाँच कराता रहे। लगभग 60 प्रतिशत रोगियों में यह पथरी अपने आप मूत्र मार्ग से निकल जाती है। शेष मरीजों में यह आकार में धीरे-धीर बढ़ सकती है और इस वर्ग के रोगियों को उपचार की आवश्यकता होती है। गुर्दे की पथरी का उपचार मुख्यत: चार विधियों से किया जाता है।

खुली शल्य चिकित्सा

यह विधि काफी प्राचीन है, इसमें सीधे गुर्दे को खोलकर पथरी निकाली जाती है। इसके मुख्य दोष है- एक लम्बा ऑपरेशन, मरीज को अधिक देर तक अस्पताल में रहने की जरूरत और अधिक खर्च । फिर भी यह विधि गुर्दों के कुछ खास किस्म की पथरियों के लिए उपयुक्त है जैसे- कैल्शियम फॉस्फेट के स्टैग, हार्न पथरी आदि।

ऐण्डोस्कोपिक विधि

आज के आधुनिक युग में इस विधि द्वारा उपचार से क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। इस विधि में अधिकांश रोगियों में चीरे की आवश्यकता नहीं पड़ती और दूरबीन विधि से पथरी पेशाब के रास्ते निकाली जा सकती है। यह विधि निचली मूत्र वाहिनी और मसाने की पथरियों के लिए आदर्श है।

     गुर्दों से पथरी निकालने के लिए भी लगभग एक सेमी. के छोटे चीरे से दूरबीन द्वारा पथरी निकाली जा सकती है। ऐण्डोस्कोपिक विधि के मुख्य फायदे हैं- ऑपरेशन के लिए बहुत समय मरीज को एक या दो दिन का अस्पताल विश्राम और अपेक्षाकृत काफी कम खर्च ।

लिथोट्रिप्सी विधि

यह आधुनिक विधि वयोवृद्ध रोगियों, पथरी के वह रोगी जिनको हृदय आदि की बीमारी भी है तथा उन रोगियों को जिनको किसी भी तरीके की शल्य चिकित्सा के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता, ऐसे रोगियों के लिए आदर्श हैं। इस विधि में किसी भी तरीके की बेहोशी या चीर की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस विधि में अत्याधिक वोल्टेज की शॉक तरंग सीधे पथरी पर फोकस की जाती है और पथरी को पूरी तरह से छोटे-छोटे महीन टुकड़ों में बदल दिया जाता है। यह टुकड़े अपने आप मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाते हैं। यह विधि गुर्दे और मूत्रवाहिनी के ऊपरी भाग की पथरियों के लिए उपयुक्त है। 

होम्योपैथीक दवाइयों के द्वारा इलाज (Homoeopathic medicine )

होमियोपैथिक चिकित्सा में गुर्दे की पथरी को निकालने के लिए अच्छी एवं कारगर औषधियाँ उपलब्ध है जो कि लक्षणानुसार चुनकर रोगी को सेवन कराने से इस रोग से छुटकारा दिलाती है। समय रहते नियमित दवा खाने और परहेज से बिना ऑपरेशन के बीमारी ठीक की जा सकती है

(1) बर्वेरिस वल्गेरिस (berberis vulgaris Q) (10-10 बूंद हर आधे घंटे पर या स्थिति के अनुसार )– पथरी के कारण सुई गड़ने जैसा दर्द गुर्दे से शुरू होकर यूरेटर से होते हुए ब्लैडर तथा फिर यूरेथ्रा में चला जाता है जो कुल्हे एवं जाँघों तक फैल जाता है, पेशाव करने पर कमर में दर्द होता है। कमर कड़ी और जकड़ी सी प्रतीत होती है। पेशाब होने से पहले, होते समय और बाद में जलन रहती है। पेशाब के साथ गाढ़ा श्लेष्मा एवं रक्त भी आ सकता है। बाँयी तरह की पथरी में विशेष लाभदायक है लेकिन उपरोक्त लक्षण मिलने पर दांयी तरफ की पथरी में उपयोगी है।

(2) कैन्थरिस (cantharis 30) ( दिन में 3-4 बार )– यदि रोगी को पेशाब करने से पहले, करते समय या उसके बाद अत्यधिक जलन, काटने जैसा दर्द, बारम्बार पेशाव करने की इच्छा, बूंद-बूंद पेशाव होना। साथ में रक्त भी आ जाता है, यह औषधि स्थानीय दाह को कम कर, पेशाब का परिमाण और वेग बढ़ाकर पथरी को यूरेटर से निकालने में बहुत ही उपयोगी है।

(3) लाइकोपोडियम (Lycopodium 30)(दिन में 3 बार )– इस औषधि का दायें गुर्दे पर अधिक प्रभाव होता है। पेट में वायु की अधिकता ,पेशाब करने पर पहले कमर में दर्द जो कि पेशाव करने के बाद कम हो जाता है। पेशाब  होते-होते रूक जाता है या रूक-रूक कर पेशाब होता है। पेशाब बहुत जोर से लगना किन्तु पेशाब निकलता नही, उसके लिए काफी देर तक बैठा रहना पड़ता है। रात को बहुत बार पेशाब आता है। पेशाब में लाल रंग की रेत भी निकलती है। 

(4) सारसापैरिला (Sarsaparilla Q या 6) (दिन में 3-4 बार )– दाहिने तरफ के गुर्दे से दर्द नीचे की तरफ जाता है। पेशाब समाप्त होने के समय बहुत जलन और दर्द।

(5) नक्स वोमिका( Nux vomica 30)(दिन मे 3-4 बार) – दाई ओर के गुर्दे से दर्द शुरू होकर पैर तक उतर आये और साथ में कमर में दर्द रहे तो यह उपयोगी औषधि है। बार-बार पेशाब का वेग, मूत्राशय खाली करने के लिए बार-बार काँखना पड़ता है फिर भी पेशाब खुलासा नहीं होता। पेशाब में रक्त आ जाता है। औपधि दर्द के समय काफी हितकर रहती है।

(6) परेरा ब्राबा (Pareira brava 30) दिन में 3 बार )– बहुत ही तेज र्सेदर्द   दर्द शुरू होकर कूल्हे एवं पैरों तक उतरता है, पेशाब में श्लेष्मा एवं रक्त रहता है। पेशाब करने की लगातार इच्छा, बहुत जोर लगाना पड़ताहै। पेशाब हो जाने के बाद बूँद पेशाब निकलता रहता है (यूरिक एसिड की पथरी)

(7) टेरेबिन्थ (Terebinth Q ) (10 -10  बूंद दिन में 3 बार )- पेशाब में बहुत तेज दर्द और जलन, खून मिला हुआ धुंधला और कालापन पेशाब 

(8) हाइंड्रेन्जिया (Hydranjea Q) (10 -10 बूंद दिन में 3 बार) – पेशाब में सफ़ेद चूर्ण , दर्द बायीं तरफ ज्यादा हो  

 

अन्य औषधियाँ

बेलाडोना, कैल्केरिया कार्ब, कोकस केक्टाई,एपिजिया रिपेन्स ,ओसिमम केन (दायी तरफ दर्द के साथ), सोलिडेगो, स्टिग्मेटा मेडिस, सीपिया, , आदि।

गुर्दे की पथरी से बचाव

      ऐसे रोगी जिनको एक बार पथरी का रोग हो जाये, उन्हें जीवन भर कुछ सावधानियाँ बरतनी आवश्यक है अन्यथा इसके पुन: बनने का अंदेशा रहता है।

खानपान और परहेज (Kidney Stones diet)

 ➤ रोगी को अधिक  मात्रा में साफ़ पानी पीना आवश्यक है। लगभग 2 से 3 लीटर के बीच पानी पीना चाहिए। 

अधिक कैल्शियम और आक्सलेट (oxalate) युक्त भोज्य पदार्थों से परहेज आवश्यक है। दूध या दूध से बनी चीजें, मांस, मछली , शलजम, चाय, कॉफी, सूखे मेवों जैसे बादाम, पिस्ता, काजू , मूंगफली में कैल्शियम और आक्सलेट की मात्रा अधिक होती है। अत: रोगी को इनका बहुत कम मात्रा में उपयोग करना चाहिए।

♦ पत्ते वाली सब्जियां ,पालक, जमीन के अन्दर पैदा होने वाली चीजे नही खाना चाहिए

टमाटर, चुकंदर, बैंगन के बीज, कच्चा चावल, उड़द और चने का अधिक सेवन करने से स्टोन की समस्या बढ़ जाती है.

♦ अधिक कैल्शियम वाले चीज नहीं खाना चाहिए

♦ अधिक सोडियम वाले पदार्थ और नमक कम से कम खाना चाहिए

♦ कोल्डड्रिंक और चोकलेट से परहेज करना चाहिए

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